बहुत कुछ लिखा हे इनमे कुछ और न समझ लेना इससे पहले हम बता दे की हम किसी के आशिक नही हैं....
चाहने पर भी...........
चाहने पर भी किसी गलती की सजा की माफी न मिले
चाहे ज़िन्दगी भर माफ किया हो ......
चाहने पर भी किसी गलती सजा की माफी न मिले
चाहे ज़िन्दगी भर माफ किया हो.......
चाहने पर भी दो शब्द तरंगे सहानुभूति की न मिले
चाहे ज़िन्दगी भर सहनुभुतिया दी हो.............
घुट घुट कर हल बेहाल हो जाए पर कोई मनाने वाली आवाज़ न हो
चाहे ज़िन्दगी भर लोगो को मनाया हो...........
चाहत हो खुल कर हसने की पर साथ कोई हसने वाली ताल न हो
चाहे ख़ुद पागल बनकर लोगो हसाया हो......
चाहने पर भी उनसे एक घरी त्याग की न मिले
चाहे उनके खुशी के लिए ज़िन्दगी भर त्याग किया हो........
चाहने पर भी कुछ पल उनकी दोस्ती न मिले
चाहे उनकी dostiके लिए ज़माने भर की दोस्ती ka त्याग किया हो......
चाहने पर भी कुछ पल उनकी नाज्किया न मिले
चाहे उनको नज्दिकिया देने के लिए ज़माने भर की नाज्कियाओ का त्याग किया हो.....
चाहने पर भी गम अपना भुलाने को उनकी एक बात न मिले
चाहे गम उनका भुलाने को ज़माने भर की बातो का त्याग किया हो.....
फिर भी................
चाहने पर भी गिला-शिकवा (shikawayat) एक पल न हो
चाहे वो ज़िन्दगी भर गिला-शिकवा करते रहो......
फिर भी.....................
फिर भी तुम्हे अनवरत अपने पथ पर चलते जाना हैं
चाहे जिन्दीगी यु ही इम्तिहान लेती रहे
तुम्हारा लक्ष्य अटल,मन स्थिर,परिश्रम हिमालय सा हो............
Sunday, March 29, 2009
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