Sunday, March 29, 2009

दोस्तों की भीड़ में..............

बहुत कुछ लिखा हे इनमे कुछ और न समझ लेना इससे pahle हम बता दे हम किसी के आशिक नही हे
दोस्तों की भीड़ में ......................


दोस्तों की भीड़ में दोस्ती ko तरसा हु
जिंदा हु फिर भी ज़िन्दगी को तरसा हू........

sochta हू उस फरिश्ते के बारे में तो
उसकी दोस्ती ke liye तरसा हू.....

सुना था सच्ची दोस्ती धीरे बढ़ने वाले पोधे की तरह होती हे
पर में तो उस पोधे को सिचने के लिए तरसा हू.....

कहते हे मुसीबत दोस्ती की कसौटी होती हे
पर में तो हर लम्हा us मुसीबत को ही तरसा हू .....

सपना था हर लम्हे में उन जेसे दोस्त मिलेंगे
पर में तो हर लम्हा उन लम्हे की तरसा हू.....

जुबा से नम लेते आंसू चालक आते हे
कभी हजारो बात किया करते थे आज एक बात को तरसा हू .....

दोस्ती में दोस्त, दोस्त का rab होता हे एहसास तो तब होता जब वो जुदा होता हे
हर लम्हा में उस जुदाई को तरसा हू .....

याद करते हे उनको तो यादो से दिल भर आते हे
कभी साथ जिया करते थे औब आज मिलने को तरसा हू.....

नन्ही सी पोटली विश्वास की जो थमाई थी चुपके से
चमक भरी आँखों के साथ हमराज बुनकर आज फिर उसी पोटली को पाने को तरसा हू .....

Dosto की भीड़ में dosti ko तरसा हू
जिन्दा हू फिर भी ज़िन्दगी को तरसा हू............

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